हिमाचल प्रदेश की चार सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणामों ने बागियों को लेकर भी पार्टियों को फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है। फतेहपुर में भाजपा प्रत्याशी की पांच हजार से ज्यादा मतों से हुई हार ने साफ कर दिया है कि बागी पार्टी के टिकट पर जीत सुनिश्चित करें, यह जरूरी नहीं। फतेहपुर में इस बार पार्टी के प्रत्याशी रहे बलदेव ठाकुर 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान बगावत पर उतर आए थे। लाख मान मनौव्वल की कोशिशों के बावजूद उन्होंने चुनाव लड़ा और पार्टी प्रत्याशी रहे कृपाल परमार को हरवाने में अहम भूमिका निभाई।
इसके बाद 2019 के चुनाव से पहले सफल कोशिशों के चलते उनकी घर वापसी हो गई। 2021 का उपचुनाव आया तो उन्हें टिकट दिलाने की हिमायत करने वालों ने दलील दी कि निर्दलीय रहते 10 हजार से ज्यादा वोट दिलाने वाले बलदेव पार्टी टिकट पर जीत सुनिश्चित कर देंगे। नेतृत्व ने भी बात मानते हुए चार साल तक ग्राउंड पर डटे रहे कृपाल परमार का टिकट काट बलदेव को दे दिया लेकिन फतेहपुर उपचुनाव में एक बार फिर भाजपा की हार हो गई।
चूंकि इस बार के उपचुनाव में भाजपा के पूर्व आईटी समन्वयक चेतन बरागटा ने टिकट न मिलने पर बगावत की और क्षेत्र में पार्टी की कमर इस कदर तोड़ दी कि उसका प्रत्याशी जमानत तक नहीं बचा पाया। नतीजों से पहले तक टीम चेतन की ओर से दावा किया गया था कि उनकी और निष्कासित समर्थकों की हर हाल में वापसी हो जाएगी। ऐसे में अब चेतन की हार और फतेहपुर में मिले सबक के बीच भाजपा के बागियों की वापसी न करने के अडिग फैसले ने पार्टी से बर्खास्त हुए नेताओं और कार्यकर्ताओं के भविष्य को अधर में डाल दिया है।
क्या कहते हैं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष
चुनाव नतीजों के बाद हार के कारणों पर मंथन किया जाएगा लेकिन यह स्पष्ट है कि पार्टी बागियों को लेकर अपने स्टैंड पर कायम है। जिन्होंने भी पार्टी से बगावत कर नुकसान पहुंचाया है उनकी वापसी नहीं होगी- सुरेश कश्यप, प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा