कानूनों के दुरुपयोग का घातक सिलसिला, स्त्री के कथन को ‘अंतिम सत्य’ मानने की मानसिकता छोड़े मीडिया, पुलिस और समाज

تبصرے · 783 مناظر

वास्तव में यह कटु सत्य है कि कुछ महिलाएं अपने अधिकारों के नाम पर निर्दोषों को जेल पहुंचा रही हैं। उनके हौसले इस

वास्तव में यह कटु सत्य है कि कुछ महिलाएं अपने अधिकारों के नाम पर निर्दोषों को जेल पहुंचा रही हैं। उनके हौसले इसलिए बुलंद हैं क्योंकि वे भलीभांति जानती हैं कि उनके कहने भर से पुलिस और अन्य लोग पुरुष को अपराधी घोषित कर देंगे। वे यह भी जानती हैं कि जब तक न्यायालय से पुरुष को न्याय मिलेगा उसका आत्मबल टूट चुका होगा और यह उनकी जीत होगी।

डा. ऋतु सारस्वत। बांबे हाई कोर्ट ने रमेश सीतलदास दलाल तथा अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य के मामले में बीते दिनों कहा कि ‘छोटे-मोटे झगड़े भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत क्रूरता नहीं हैं।’ न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई और एमआर बोरकर की खंडपीठ ने पुलिस के पक्षपातपूर्ण रवैये को लेकर यह कठोर प्रतिक्रिया भी दी कि ‘किसी निर्दोष व्यक्ति को आरोपमुक्त होने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने हेतु विवश करना और उसकी प्रतिष्ठा खराब करने के साथ उसे मानसिक आघात पहुंचाना उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खतरे में डाल देता है।’

تبصرے