राम मंदिर निर्माण में शंकराचार्यों के योगदान को कोई नहीं नकार सकता: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

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अयोध्या राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होनी है। जिसको लेकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सव

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने राम मंदिर के निर्माण में शंकराचार्य के योगदान के बारे में बताया !

नई दिल्ली: अयोध्या राम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देशभर में उत्साह की लहर है। वहीं उत्तराखंड के ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने निर्माणाधीन मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा पर ऐतराज जताया है। जिसको लेकर एनबीटी ने शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद से बातचीत की। इस दौरान उन्होंने राम मंदिर के निर्माण पर शंकराचार्य के योगदान के बारे में बताया।

24 दिनों तक शंकराचार्य ने की बहस

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि अगर आज राम मंदिर में भगवान राम के आगमन की तैयारी हो रही है। उसमें शंकराचार्य का मुख्य योगदान रहा क्योंकि सड़क पर चिल्लाने से राम मंदिर नहीं बना है उसके लिए कोर्ट में पैरवी करनी पड़ी है। उन्होंने आगे कहा कि 90 दिन तक कोर्ट में बहस हुई। जिसमें 50 दिन तक मुसलमानों की तरफ से बहस हुई ,बचे हुए 40 दिन हिंदुओं की तरफ से बहस हुई। उन 40 दिनों में 24 दिनों तक शंकराचार्य ने बहस की। मंदिर के 350 प्रमाण कोर्ट में पेश किए थे जिसके बाद रामलला की वापसी हो रही है। उन्होंने आगे कहा कि मीडिया शंकराचार्य के योगदान को दिखाना ही नहीं चाहते हैं। दुनिया भर के सामने हमारे योगदान को क्यों नहीं ले गया मीडिया?

प्राण प्रतिष्ठा पर धर्म शास्त्र क्या कहते हैं ?

राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा पर धर्म शास्त्र को लेकर तर्क दिया कि लोगों के मन में धारणा बन गई है कि मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा होगी। हालांकि धर्म शास्त्र ये कहते हैं मूर्ति में तो प्राण प्रतिष्ठा होगी ही क्योंकि वो मंदिर का एक अंग है लेकिन मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होगी। धर्म शास्त्र के अनुसार प्राण शरीर के अंदर होते हैं और शरीर मंदिर है मूर्ति नहीं है और अभी तक मंदिर पूरा नहीं बना है। ऐसे में अगर अधूरे शरीर में प्राण डाल देना उचित नहीं होगा।

 

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