राममंदिर का चुनावी फायदा BJP को मिलेगा? अयोध्या आ रहे लोग मान रहे मोदी की वजह से बना मंदिर

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अयोध्या में 22 जनवरी को राम लला की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है। उससे पहले मैंने बनारस, अयोध्या और लखनऊ जाकर लोगों क

ज्यादा राम भक्त मुझे अयोध्या में मिले। उस दिन सीएम योगी आदित्यनाथ आने वाले थे और अगले दिन पीएम का दौरा था। सब कुछ बंद था, हर जगह पैदल जाना पड़ा। 11 इंच वाले छोटे राम लला का मंदिर दो बजे खुलता है, वहां लाइनें लगी हुई थीं। महिलाओं के एक ग्रुप ने बताया कि उन सबने जोड़कर राम मंदिर के लिए पचास हजार रुपये दिए हैं। सबके पास जय श्री राम लिखा हुआ कुछ न कुछ था। मैंने पूछा कि आप अभी क्यों आए हो, मंदिर खुलने के बाद क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि हम मंदिर को बनते भी देखना चाहते थे।

अपनी-अपनी राय

अयोध्या में एक दिलचस्प चीज दिखी। जो लोग राम मंदिर बनाने में शामिल रहे हैं, उनमें से कुछ का कहना है कि मंदिर ज्यादा भव्य बनाना चाहिए था। अगर यह सही है कि 500 साल के संघर्ष के बाद यह एक ऐसे सिविलाइजेशन प्रॉजेक्ट के रूप में उभर कर आ रहा है, जिस तरह से मक्का या स्वर्ण मंदिर है, तो उसे उसी तरह से भव्य होना चाहिए था। मंदिर का मुख्य द्वार बहुत छोटा है। अगर लाखों लोगों की तैयारी है, तो कैसे लोग अंदर जाएंगे? कुछ कहते हैं कि सैंड स्टोन की लाइफ बमुश्किल 100 साल की होती है, इसलिए मंदिर को ग्रेनाइट पत्थरों से बनाना चाहिए था।

मोदी और मंदिर

अयोध्या आने वाले ज्यादातर राम भक्त मोदी के प्रशंसक भी हैं। उनका मानना है कि मोदी की वजह से राम मंदिर बना है, जबकि सच यही है कि शीर्ष अदालत के फैसले से मंदिर बनने का रास्ता साफ हुआ। तो यह मंदिर सिर्फ राम लला से नहीं जुड़ा है, यह मोदी और उनकी लीडरशिप से भी जुड़ा है। यह बात कहीं न कहीं लोगों के दिमाग में है।

विपक्ष की दुविधा

लखनऊ में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा कि हम तो जाएंगे जब राम लला का बुलावा आएगा। जो विपक्ष के नेता हैं, उन्हें लग रहा है कि राम तो BJP के साथ जुड़ गए हैं। मंदिर का फायदा BJP को हो रहा है, तो सवाल है कि हम जाएं या न जाएं। विपक्ष के लिए बहुत बड़ी दुविधा का प्रश्न यह बन गया है।

हिंदू और हिंदुत्व

अयोध्या में महाराष्ट्र के नासिक से महिलाओं का एक बड़ा ग्रुप लाया गया था। RSS के लोग लगे हैं कि यहां अधिक से अधिक लोगों को लाने में। ग्रुप की महिलाओं ने कहा कि महाराष्ट्र में हम बहुत नाराज हैं BJP से, लेकिन वोट हम मोदी को ही देंगे। मैंने कहा कि फिर तो आपका वोट BJP को जाएगा। इस पर वे परेशान हो गईं। उज्जैन की महिलाएं बोलीं कि हम तो नाराज हैं, शिवराज चौहान को सीएम नहीं बनाया। फिर भी हम मोदी को सपोर्ट करेंगे।

राम से कैसे लड़ें

1992 में बाबरी मस्जिद घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने कहा था कि हम BJP से तो लड़ सकते हैं, लेकिन राम से कैसे लड़ेंगे? राम पर पूरा कब्जा BJP का है, जिसे काउंटर करना विपक्ष का बहुत बड़ा चैलेंज है।

लखनऊ के कुछ संस्थानों में 2017 विधानसभा चुनाव के वक्त कुछ स्टडीज हुई थीं, जिनकी रिपोर्ट्स अभी सार्वजनिक नहीं हुई हैं। ये स्टडीज ज्यादातर OBC के बीच हुई थीं। इसके मुताबिक, कोई नहीं कहता कि राम मंदिर नहीं बनना चाहिए। लेकिन आधे लोग जरूर पूछते हैं कि इससे हमारी जिंदगी में क्या फर्क आएगा? मैं मानती हूं कि देश का अधिकतर हिंदू चाहता है कि राम मंदिर बने। लेकिन किस तरह से उनकी जिंदगी बदलने वाली है, कुछ लोग यह सवाल करेंगे।

मंदिर बनेगा मुद्दा

गौर करें तो 1992 के बाद के चुनावों में मंदिर का मुद्दा निर्णायक नहीं था। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी पीएम रहते इस मुद्दे को आगे नहीं किया क्योंकि तब गठबंधन की सरकार थी और दूसरे सहयोगी दलों को यह पसंद नहीं था। मगर 2024 में यह चुनावी मुद्दा बनेगा क्योंकि मंदिर अब मोदी की लीडरशिप से भी जुड़ गया है।

धार्मिक या राष्ट्रीय

हमारा देश धर्मनिरपेक्ष रहा है। महात्मा गांधी कहते थे- ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम, तो वह सेंटिमेंट दिखता भी था। आज प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि प्राण प्रतिष्ठा के दिन दिवाली मनाई जाए। एक धार्मिक समारोह को राष्ट्रीय समारोह बनाने की कोशिश है। मुख्य चीज है कि अगर मैं हिंदू नहीं होती तो आज मुझे कैसा लगता? अगर नरेंद्र मोदी तीसरी बार सत्ता में आए तो उनकी एक बड़ी चुनौती होगी कि माइनॉरिटीज को कैसे विश्वास में लिया जाए।

बाकी है आशा

युवाओं को अपनी हिंदू पहचान का आभास होता जा रहा है। सवाल है कि अगर हिंदू पुनरुत्थान हो रहा है तो क्या यह हमें सुलह-शांति की तरफ ले जा सकता है? यह मेरे मन की आशा हो सकती है क्योंकि हमारा देश जितना विविधतापूर्ण है, दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है।

 
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