उम्र 27 साल जरूर थी, पर हौसले आसमानी थे। जज्बा ऐसा कि राह कभी आसान चुनी ही नहीं। तभी तो बचपन के सपने को पूरा करने के लिए वकालत की पढ़ाई छोड़, सेना की वर्दी चुनी। गाने का शौक था और अक्सर तेरी मिट्टी में मिल जावां... गाना गुनगुनाते थे। गीत के बोल अब हकीकत बन गए और सच में शुभम पावन माटी बन गया। ये बताते हुए भाई और दोस्तों की आंखों से आंसू छलक पड़े।
प्रतीक एन्क्लेव स्थित आवास पर गमगीन बैठे नरेश गुप्ता (शुभम के ताऊ के बेटे) से शुभम का जिक्र छेड़ने पर वो भावुक हो गए। बोले, उन्हें चुनौतियां स्वीकार थीं। चाचाजी (पिता बसंत गुप्ता) के वकील होने के कारण शुभम ने विधि की पढ़ाई जरूर की, लेकिन मन सेना में लगा था। सेना में उन्हें सिग्नलिंग सेल में जिम्मेदारी मिली, लेकिन ये भी रास नहीं आया। दो-तीन महीने बाद ही सेना की ओर से कमांडो के लिए ट्रेनिंग के लिए फाॅर्म भरवाए गए। शुभम को इसी का इंतजार था और फॉर्म भर दिया।
नरेश ने कहा कि ट्रेनिंग के बाद जब शुभम ने कमांडो बनने की बात बताई तो मैंने कहा कि इसमें खतरा अधिक रहता है। तो बोला, भइया आसान गोल करना ही किसे है। देखना एक दिन पूरा देश सलाम करेगा। ये कहते हुए नरेश फफक पड़े। खुद को संभालते हुए बोले...देखो, आज उसने ऐसा ही कर दिखाया। ऐसे लोग भी नमन करने आ रहे हैं, जिनसे हमारा रिश्ता भी नहीं है।
हाथ-पैरों में ठेक देख जाना कमांडो बन गए : ऋषभ
शुभम के छोटे भाई ऋषभ गुप्ता ने बताया कि भैया ने अपनी जिंदगी के लक्ष्य तय कर रखे थे। पूरा होने के बाद ही वह किसी को बताते थे। सेना में कमांडो की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद घर आए तो काफी पतले नजर आए। हाथ-पैरों में ठेक बन गई थीं। ये देख मम्मी-पापा ने पूछ लिया। तब उन्होंने बताया कि वह कमांडो बन गए हैं। वो मुझसे भी कहते थे कि मन में जो है उसे पूरा करने के लिए मेहनत करो।