तमिलनाडु में कावेरी और कालीदाम नदी के बीच टापू पर बना श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा पूजनीय मंदिर है और इसमें विष्णु, राम, कृष्ण व लक्ष्मी सभी मौजूद हैं। इसका विस्तार 155 एकड़ में है। हालांकि कंबोडिया के अंकोरवाट को भी सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता है। विस्तार में वह मंदिर 400 एकड़ में है, लेकिन उसे अब पर्यटन स्थल के रूप में ही जाना जाता है। वहां व्यापक स्तर पर धार्मिक आयोजन व पूजा-पाठ नहीं होता। रंगनाथ स्वामी मंदिर में हाल ही में दिवाली पूर्व का विशेष ओंजल उत्सव मनाया गया है।
मान्यता है कि विष्णु यहां राम के रूप में विराजित हैं। उन्हें पेरुमल और अजागिया मनावलन भी कहा जाता है। जिसका अर्थ है ‘हमारे भगवान’ और ‘सुंदर वर’। लक्ष्मी यहां रंगनायकी कही जाती हैं। मंदिर में सबसे बड़ा उत्सव कृष्ण जन्माष्टमी पर होता है। संभवत: इतने देवताओं के इस मेल के कारण ही दक्षिण भारत में इस मंदिर का गोपुरम सबसे ऊंचा है, जो 237 फीट का है।
मंदिर के पुजारी पार्थसारथी बताते हैं कि मुख्य मंदिर को रंगनाथ स्वामी मंदिर कहा जाता है, जो भगवान का शयन कक्ष है। इस मंदिर में विष्णु की प्रतिमा शयन मुद्रा में है। साथ ही विष्णु की खड़ी प्रतिमा, कृष्ण, लक्ष्मी, सरस्वती, श्रीराम, नरसिम्हा के विविध रूप और वैष्णव संतों की प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर का निर्माण 9वीं सदी में गंग राजवंश के दौर में हुआ था। 16वीं और 17वीं सदी में भी कई निर्माण कार्य किए गए।
रंगनाथ स्वामी मंदिर में दिवाली के पहले बड़ा उत्सव मनाया जाता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की दूज से एकादशी तक नौ दिन का पर्व चलता है। इस पर्व को ओंजल उत्सव कहते हैं। श्रीरंगनाथस्वामी की प्रतिमा को पालकी में बैठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है। वैदिक मंत्रों और तमिल गीतों से दुर्घटनाओं और दोषों को दूर करने की प्रार्थना की जाती है। साल में एक बार रंगनाथ श्रीरंगम के राजा बनते हैं। दिसंबर-जनवरी माह में 21 दिन का उत्सव होता है। इस दौरान रंगनाथ एक दिन के लिए राजा बनाए जाते हैं। उस दिन उन्हें रंगराजन पुकारा जाता है। मंदिर परिसर में अलग-अलग देवी देवताओं के 80 पूजा स्थल हैं। दीवारों पर सिर्फ तमिल ही नहीं, संस्कृत, तेलुगु, मराठी, ओडिया और कन्नड़ भाषा में 800 से अधिक शिलालेख अंकित हैं। इनकी लिपि तमिल और ग्रंथ है। ग्रंथ लिपि का इस्तेमाल तमिल और मलयालम भाषाविद् छठी सदी से ही संस्कृत लिखने के लिए करते रहे हैं।
इसी महीने एकदाशी तक मनाए गए ओंजल पर्व में रंगनाथस्वामी की शोभायात्रा निकाली गई।
इसी महीने एकदाशी तक मनाए गए ओंजल पर्व में रंगनाथस्वामी की शोभायात्रा निकाली गई।
श्रीराम यहां विभीषण के सामने विष्णु रूप में प्रकट हुए थे
जनश्रुति है कि त्रेता युग में भगवान राम ने यहां लंबे समय तक आराधना की थी। लंका विजय के बाद जब वे वापस लौटे तो यह मंदिर उन्होंने विभीषण को सौंप दिया। विभीषण के सामने भगवान राम इसी स्थान पर विष्णु रूप में प्रकट हुए थे और कहा था कि वे यहां रंगनाथ के रूप में निवास करेंगे और लक्ष्मी रंगनायकी के रूप में रहेंगी।
श्रीरंगनायकी से मिलने जाते हैं रंगनाथ स्वामी
परिसर में दूसरा बड़ा मंदिर रंगनायकी का है, जिन्हें श्रीरंग नाचियार भी कहा जाता है। उनका एक नाम पाडी थंडा पथिनी भी है, जिसका शाब्दिक अर्थ है वो स्त्री जो कभी अपने घर की चौखट से बाहर नहीं जाती। मंदिर में बड़े धार्मिक उत्सवों पर रंगनाथ स्वामी की प्रतिमा को उनकी पत्नी रंग नाचियार के मंदिर में लाया जाता है। मंदिर के कई बड़े उत्सव और पूजा रंगनायकी के मंदिर में होते हैं। परंपरागत रूप से अन्य मंदिरों में विष्णु या पेरुमल की पूजा में लक्ष्मी के श्रीदेवी और भूदेवी रूपों के साथ होती है, लेकिन इस मंदिर में रंगनायकी प्रमुख हैं। इसलिए जब भी पूजा होती है, विष्णु के साथ रंगनायकी होती हैं, श्रीदेवी और भूदेवी पीछे की तरफ विराजित रहती हैं।
यहां गौतम ऋषि को दिए थे रंगनाथ ने दर्शन
मान्यता है कि गोदावरी तट पर गौतम ऋषि का आश्रम था। उन्होंने गोदावरी नदी को देव लोक से बुलाया था। बाद में गौ हत्या के आरोप पर गौतम ऋषि को यह आश्रम छोड़ना पड़ा था। उन्होंने श्रीरंगम आकर भगवान विष्णु की तपस्या की। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर रंगनाथ स्वामी के रूप में उन्हें यहीं पर दर्शन दिए थे। बाद में यहां मंदिर का निर्माण हुआ, जो आज विशाल परिसर में बदल चुका है। मंदिर इतना बड़ा है कि पूरा दिन यहां बिताया जा सकता है।