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आसत्य सरल होकर भी भयंकर क्यों? | #सत्य #आसत्य

आसत्य सरल होकर भी भयंकर क्यों?

आसत्य सरल होकर भी भयंकर क्यों?

आचार्य प्रशांत: कठोपनिषद्, तृतीय वल्ली, श्लोक क्रमांक चौदह। "उपनिषद्कार कहते हैं कि सत्य छुरे की धार जैसा है,